बी डी त्रिपाठी

Month: February 2017

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 के लिए आदर्शवादी काँग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा दिया गया ऐतिहासिक भाषण

मेरी आवाज सुनने वाले सभी साथियों का, क्रान्तिकारी अभिवादन, स्वागत, एवं प्रणाम करता हूँ। बहुत दिनों बाद, आपके सामने कुछ ढेर सारे सच, उजागर करने के लिये उपस्थित हुआ हूँ। दौर बदला, आवाम का मिजाज बदला, लेकिन नहीं बदली है तो उस अन्तिम आदमी की तकदीर, जिसमें बदलाव लाने के लिये, मैं लगातार गुहार लगा रहा हूँ, आवाम को जगा रहा हूँ। वर्षों पहले, जब आपका ये साथी, बृजेन्द्रदत्त छात्र संघ के चुनावों में अपनी बात कहने आया था, तो भी मुद्दा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन का ही था, समय बीतता गया लेकिन बी0डी0 त्रिपाठी की लड़ाई बन्द नहीं हुई, लोग थक गये, वापस जाकर उसी व्यवस्था में रम गये, जिसके बदलाव का सपना लेकर लड़ाई की शुरुआत की गयी थी, लेकिन मेरी लड़ाई लगातार जारी है, मैं लडूँगा, बिना रूके, बिना झुके, बिना थके, लगातार लडूँगा, जब तक जान है तब तक लडूँगा। उ0प्र0 विधान सभा के इस चुनाव 2017 में भी कुछ लोग लड़ रहे हैं लेकिन उनकी लड़ाई किस मकसद के लिये है? कभी आपने यह गौर किया है, कि लगभग-लगभग सभी लड़ने वालों का मकसद, अपनी निजी तरक्की और बेहतरी का है, और वे उस बेइमान, भ्रष्ट और सत्ता लोलुप राजनीतिक दल को मजबूत करना चाहते हैं, जो सूबे की और देश की बर्बादी के असल जिम्मेदार हैं, गुनेहगार हैं। मेरा भी ताल्लुक एक राजनीतिक दल आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी से है और एक आदर्शवादी होने की वजह से ही, यह जरूरी है, कि विधान सभा चुनावों में, निर्णय लेने की एक महत्वपूर्ण घड़ी में, कुछ जरूरी विचारों, मंसूबों से, आपको अवगत करा दिया जाये। आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी का आदर्शवाद किसी भी जुल्म, जबरदस्ती, अत्याचार, झूठ और देशद्रोह के खिलाफ लड़ाई लड़ना ही है। भारत देश के राजनीतिक इतिहास में पिछले तीन-चार वर्षों में, जिस तरीके की अनैतिकता, झूठ और जुमलेबाजी का चलन बढ़ा है, उसका पर्दाफास करने, मुंहतोड़ जवाब देने के लिये, सारे आदर्शवादियों को, एकजुट होकर, एक आवाज में, लड़ाई-लड़ने, संघर्ष करने के लिये, आगे आना होगा। आज हम एक एैसी व्यवस्था और दौर में, घुटन के साथ जीने के लिये, मजबूर किये जा रहे हैं, जिसके खिलाफ, एक लम्बी लड़ाई लड़कर, आजादी पायी गयी थी। मेरी दृष्टि में, आजादी का संघर्ष, एक सतत प्रक्रिया है, और वह संघर्ष सदा ही जारी रखना पड़ता है। आजादी के बीते लगभग 70 वर्षों में, हमने अपनी आजादी को लगभग खो दिया है, देश की जितनी व्यवस्थायें हैं, कानूनों एवं बन्दिशों के नाम पर, कारागार में परिवर्तित हो चुकी हैं। पुलिस और सेना के बल पर चलायी जाने वाली व्यवस्था, में अन्तिम पायदान पर खड़े आदमी के लिये, कहीं कोई जगह नहीं है। कानून की पढ़ाई में, यह भी है, कि कानून सरल, मानने योग्य और सुविधा देने वाला होना चाहिए आज मजबूत आदमी के लिये कानून सरल और सुविधा देने वाला ही है, मानना या न मानना मजबूत आदमियों की मर्जी पर है, दूसरी तरफ मजबूर आदमी के लिये, कानून की कठिनता बताई जाती है, कानून को बाध्यकारी बताया जाता है उसी कानून के सहारे, मजबूर आदमी को, और मजबूर करके उसकी आजादी, उसका अपना आत्मसम्मान, आत्मगौरव छीन लिया जाता है। देश की व्यवस्था को बनाने के लिये नेता चुनने की आजादी दी गयी है, नेता चुनने में सहयोग देने वाली संस्था है निर्वाचन आयोग निर्वाचन आयोग ने, एैसे-एैसे नियम बना रखे हैं, एैसी-एैसी बन्दिशें लगा रखीं हैं, कि किसी भी प्रकार से, नये व्यक्ति या राजनीतिक दल, खास तौर पर जो आदर्शवादी हों, वे आगे आ ही न सकें, ऊपरी तौर पर देखने में, लगता है कि इन्होंने पूरी आजादी दे रखी है, लेकिन वास्तविकता यह है, कि केन्द्रीय राजनीति में, सत्ताधारी राजनीतिक दल के इशारे पर, उनकी सुविधा को ध्यान में रखकर ही, निर्वाचन आयोग, फैसले करता है, उत्तर प्रदेश विधान सभा का कार्यकाल 27 मई तक था; निर्वाचन आयोग, यदि चाहता तो 12 मार्च तक अन्य चार राज्यों के चुनाव कराने के पश्चात, 20 अप्रैल से 20 मई के बीच में, उत्तर प्रदेश में चुनाव सम्पन्न कराकर, 23-25 मई तक परिणाम घोषित कर सकता था, जिस दौर में उत्तर प्रदेश में सड़के नहीं थीं, होटल नहीं थे, संचार व्यवस्था नहीं थी उस दौर में सात चरणों में चुनाव कराना एक जरूरत थी, अब जबकि सड़के हैं, संचार व्यवस्था है, ठहरने के लिये होटल है, उत्तर प्रदेश के चुनाव, तीन चरणों में भी पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता से कराये जा सकते हैं, चार राज्यों में चुनाव सम्पन्न कराने के बाद, निर्वाचन आयोग की पूरी मशीनरी, खाली रहती, उनका सही सदुपयोग होता, जनता के पैसे की बर्बादी रुक सकती थी, लेकिन उत्तर प्रदेश की सूबाई राजनीति की हालत डगमगायी, तो केन्द्रीय सत्ता के प्रमुख राजनीतिक दल को लाभ पहुंचाने के लिये, आनन-फानन में चुनावों की घोषणा कर दी गयी, प्रतिकूल मौसम और नोटबन्दी के हाहाकार, में आर्थिक रूप से विपन्न नेता और राजनीतिक दल, खड़े न रह सकें। इसके लिये आधी-अधूरी तैयारी में भी चुनाव सम्पन्न कराने का संजाल बुनकर, नियमों की आड़ लेकर, लोकतन्त्र के सबसे बड़े तमाशे का ऐलान कर दिया गया। विधायक का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को कोई सहयोग नहीं, हजार बन्दिशें अलग से, राजनीतिक दलों के खर्च पर और निर्वाचन आयोग के खर्च पर कोई पाबन्दी नहीं है। उत्तर प्रदेष के 403 विधान सभा क्षेत्रों में, चुनाव लड़ने के लिये, स्थापित राजनीतिक दल, पांच हजार से पचीस हजार करोड़ रुपये, खर्च, कर देंगे और दूसरी तरफ, निर्वाचन आयोग, उत्तर प्रदेश के 403 विधान सभा क्षेत्रों का परिणाम घोषित करने तक, लगभग चालीस हजार करोड़ रुपये, खर्च कर चुका होगा। जनता के धन की बर्बादी लोकतन्त्र के सबसे बडे़ प्रहसन ‘‘आम चुनाव’’ के नाम पर देखते ही बनती है।

छोटी अदालते हों, या बड़ी अदालते हों, उससे भी बड़ी अदालते हों, या फिर सबसे बड़ी अदालते हों, सरकार और सरकार की मशीनरी के खिलाफ फैसले देने में आनाकानी करती हैं, हिचकती हैं, टालमटोल करती हैं या इतना अधिक विलम्ब कर देती हैं, कि न्याय का मूल्य ही व्यर्थ हो जाये, सारा का सारा सिस्टम चुनिंदा लोगों को लाभ पहुंचाने का यन्त्र बनकर रह गया है और अचम्भे की बात यह है कि गाँधी, सुभाष, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां और जर्नल शाहनेवाज जैसे स्वाभिमानी क्रान्तिकारियों का देश, होने के बावजूद, लोग किंकर्तव्यविमूढ बने अपनी बारी आने का इन्तजार करते हैं।

403 विधायक, 100 एम0एल0सी0, और 80 सांसद, और 31 राज्यसभा सांसद, देने वाले भारत देश के, सबसे बड़े राज्य उ0प्र0 विधान सभा चुनावों के नतीजों से, भारत देश की आगामी दिशा और दशा तय होनी है। यह उ0प्र0 का चुनाव नहीं है, यह भारत के भविष्य का चुनाव है, आगे चलकर यह देश भारत, कैसा भारत बनने वाला है, वह इन्हीं चुनावों से निश्चित हो जायेगा। इसीलिये, आज एक बार फिर आपको जगाने आया हूँ, सन् 2012 के पूर्व, अपने पुराने राजनीतिक जीवन में, बी0डी0 त्रिपाठी ने क्या खोया, क्या पाया, यह गैर जरूरी है, लेकिन एक व्यक्ति के नाते, मुझे इस बात का संतोष है, कि मैने लड़ाई लड़ी, और लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाया, 2004 के लोकसभा चुनावों में, आत्ममोही और बहके हुये लोग, जब इस देश को, एक कुख्यात साम्प्रदायिक राजनीतिक दल के हवाले करने को अमादा थे, उस समय भी, मैंने अपनी गुहार जारी रखी, और परिणाम यह रहा कि एक छद्म राजनीतिक दल, के हाथ में देश की बागडोर नहीं लगने पायी। यह उ0प्र0 का सौभाग्य है कि यहाँ एक दो नहीं कई राजनीतिक विकल्प जनता के सामने मौजूद हैं। अगर उ0प्र0 की आवाम से, जनता जनार्दन से, फैसले लेने में चूक हो गयी, तो इसका खामियाजा, पूरे देश को, सदियों तक भुगतना पड़ेगा। आज जो हालात हैं, उसमें जनता-जनार्दन, व्यवस्था की चालाकियों, और जाल फरेब में न फंस जाये, इसलिये अपने इस साथी की आवाज को गौरतलब होकर सुनियेगा। लोग कहते हैं, लोग कहेंगे, लोग कहते रहेंगे कि मैं असभ्य हूँ, मैंने शालीनता तोड़ी, मेरी बात कहने का तरीका मर्यादा रहित है, ठीक है, मैं गलत हूँ, तो मुझे सजा दीजिये, लेकिन यह सलीका भी, हमने इन्हीं के बीच रहकर सीखा है, मुझे बताइये कि स्व0 सुनन्दा पुष्कर के लिए, रायबरेली की सांसद महोदया और उनके पुत्र-पुत्रियों के लिए, श्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती और तमाम लोगों के ऊपर मोदी जी और उनकी नौटंकी कम्पनी का कमेन्ट, संस्कार कौन से नये आयाम स्थापित करता था? सन् 2012 में बनी, आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी के आदर्शवाद में यह साफ है, कि न गलत करेंगे और न गलत सहेंगे और आज आपसे गलत न हो जाये इसीलिये यह आवाज लगा रहा हूँ।

आज उ0प्र0 में पूरी ताकत के साथ सत्ता में आने के लिये, बिना सही-गलत की परवाह किये हुये, जो राजनीतिक दल घमासान मचाये हुये हैं, उनके नापाक मंसूबों को समझना होगा। केन्द्रीय सत्ता की बागडोर सम्हाले हुये व्यक्ति के, दोहरे चरित्र, और चाल चलन को, गहरायी से समझना होगा। 2014 के लोकसभा चुनावों में, महानायक के आम्डबरपूर्ण वेशभूषा में, अवतरित होने वाले मसखरे और जुमलेबाज नेता की, बहुअर्थी चालाकी भरी बातों में आकर, भोलेभाले बहुतेरे देशवासी गुमराह हो गये, भ्रम और फरेब में आ गये, और धोखा खा बैठे। सावधान हो जाइये! अबकी भी उनकी व्यूह रचना, एक सधे हुये बहेलिये की तरह ही है, कुछ लोक-लुभावन दानों और बातों का चारा डालकर, वे आपको, आपकी भावनाओं को बेचकर, अपना उल्लू सीधा कर लेंगे, और नतीजा यह होगा, कि भारत देश, एक अन्तहीन अंधेरे की ओर चला जायेगा। मैं एलानिया तौर पर ये कह रहा हूँ कि भारत देश के प्रधानमंत्री पद के लिए, मेरे अन्तर्मन में आदर-सम्मान और श्रद्धा है किन्तु न तो मैं नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को पसन्द करता हूँ, और न ही उनकी सोच, चरित्र और चालबाजियों को।लहू की बात करता है, कफन की बात करता है, वो कारोबारियों के साथ धन की बात करता है, जनता-जनार्दन ने खीझ और बहकावे में आकर एैसा नमूना चुन लिया यारो, वतन की बात करनी थी, ये मन की बात करता है। भारत देश में, राजनीतिक दल हैं, और उन दलों की अपनी-अपनी विचारधारा है, विधारधारा कैसी भी हो, लेकिन भारत देश की अखण्डता-सम्प्रभुत्ता और आर्थिक सम्पन्नता पर, आंच नहीं आनी चाहिये, यह पहली शर्त है। भारतीय जनता पार्टी और उनके साथियों ने, जब-जब देश और प्रदेश की बागडोर सम्भाली, देश को शर्मनाक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा, अनुकूल हालात को प्रतिकूल परिस्थिति में बदल देने वाली, भारतीय जनता पार्टी, और उनके नेता गुनेहगार हैं। आत्म सम्मान और आत्म गौरव से विमुख इनके नेता, अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों के हाथों बिके हुये देशद्रोही हैं, सीधे अर्थों में गद्दार हैं, इन्होंने पूरे-पूरे देश को ले आकर दो राहे पर खड़ा कर दिया। दो साल पहले विश्व की बड़ी आर्थिक महाशक्ति, जापान की बराबरी करने वाला देश भारत, आज अपनी तरक्की के मुकाम से, 40 साल पीछे चला गया है। नोटबन्दी के नुकसान की भयावाह तस्वीरों का आगाज, अभी बाकी है, इन्होंने नुकसान होने पर, चैराहे पर जिन्दा जलाने, लटकाने जैसी लच्छेदार बातें कहीं थीं, यदि इनमें आत्म गौरव-आत्म सम्मान होता, तो ये प्रायश्चित करने के लिये, आगे आते, लेकिन आत्सम्मान से विमुख, ये गद्दार और देशद्रोही लोग, जिन्होंने भारत की आर्थिक ताकत को, विदेशी शक्तियों के इशारे पर, पंगु और रीढ़हीन बना दिया, ये आत्म सम्मान क्या जाने? जब इनके पुरखे और बाप-दादे समान इतिहास पुरुष अंग्रेजों के सामने, माफीनामा लिखकर, गिड़गिड़ाते रहते थे। याद रखिये, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री, इन्हीं नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को, अमेरिका ने वीजा देने से मना कर दिया था, अगर इनके खून में, आत्म गौरव और आत्म सम्मान का, एक कतरा भी रहा होता, तो, ये अमेरिका कभी न जाते, बल्कि भारत देश को, अमेरिका के समकक्ष बनाने में अपनी ऊर्जा लगाते, लेकिन इनके खून में व्यवसाय है, गलत चीज को अच्छी पैंिकंग के सहारे, बेचने के तरफदार और हुनरमन्द हैं, अपने वैवाहिक जीवन को छुपाने वाले इस राजनीतिज्ञ ने, पूरे देश के आत्मगौरव को, आत्म सम्मान को, आर्थिक बल को, विदेशियों के हाथों बेंच दिया, किसी देश की राजनीति में, लोकतांत्रिक व्यवस्था में, इससे बड़ा प्रहसन और क्या हो सकता है, कि बिना संसदीय मंजूरी के, बिना मंत्रिमंडल की मंजूरी के, एक निरंकुश शासक, भयानाक जाड़े के दिनों में, पूरे देश को, लाइन में खड़ा कर देता है, भोले-भाले लोग, इस उम्मीद में, कि 52 दिनों बाद, 15-15 लाख रुपये मिलेंगे, राजी-खुशी लाइन में लगने, दुःख सहने, को तैयार हो जाते हैं। इसी पार्टी का आत्म सम्मान विमुख दूसरा नेता, जो कालजयी क्षत्रिय वर्ण का मसीहा बनने की जुगत और फिराक में है, फैसले को सही बताता है, समर्थन करता है, अपने पुत्र के लिये विधायकी का टिकट पाने के मोह में, कहता है, कि वोट भले मत दीजिये, परन्तु जूते मत मारिये, इन्होंने राजनीतिक परिपाटी तोड़ी है, गुरू का अपमान किया है, इन्हें कीमत चुकानी ही पड़ेगी। अपनी आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी के व्याख्यानों में, मैं अपने साथियों को बार-बार कहता हूँ, मुझसे लड़ना-झगड़ना मेरा विरोध करना, जब बात न-ही-बने, तो अलग हो जाना, किसी भी राजनीतिक दल, या व्यक्ति के पास जाना, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और उनके नेताओं की परछायीं, और साये से भी दूर रहना, वरना गद्दारी और कमीनेपन का एैसा संक्रमण तुम्हारे अन्दर आ जायेगा, जो तुम्हारे मूल डी0एन0ए0 को ही नष्ट कर देगा, पुरखों-बाप दादों, की त्याग तपस्या और ईमानदारी सब नष्ट हो जायेगी, आने वाली पीढ़ी का, सारा नैतिक बल खत्म हो जायेगा, भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करने, और सदस्यता लेने मात्र से, आपके जो बुजुर्ग, स्वर्ग में देवताओं के सानिध्य में थे, वे वहां से बाहर निकाल कर, घोर रौरव नर्क में भेज दिये जायेंगे एैसे घनघोर कुत्सित कर्म से बचना, और पूर्वजों के मान-सम्मान के लिये, अपने नैतिक बल को बचाकर रखना कभी-भी भारतीय जनता पार्टी, या इनके नेता का, हमराह-हमसफर, और साथी मत बनाना। मैं और लोगों से यह कहता हूँ, कि बहकावे और लोभ-लालच में आकर अगर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की भूल हो गयी है, तो एक दिन उपवास रहकर, प्रायश्चित करो। ईष्ट देवता की आराधना पूजा, नमाज, इबादत के बाद शुद्ध होकर आहार ग्रहण करो आदर्शवादी बनो। केन्द्रीय सत्ता की प्राप्ति के लिये, इन्होंने झूठ बोला, जुमला सुनाया, मसखरों जैसे प्रहसन किये, कहते थे, सत्ता में आयेंगे, तो पारदर्शिता लायेंगे, जांच एजेन्सियों को निष्पक्ष भाव से काम करने देंगे, लोकपाल की नियुक्ति करेंगे, पूरी की पूरी व्यवस्था सुधारेंगे, उसे बदलेंगे, लेकिन इन्होंने किया क्या, अंधा बाँटे रेवड़ी घरे घराना खाय। शैक्षणिक संस्थानों, संवैधानिक निकायों में, आर0एस0एस0 के लोगों को, नियम कानून की अनदेखी करके, भर्ती किया जा रहा है। बिना कार्यकाल समाप्त हुये, बोर्डों को भंग किया गया, उनकी स्वायत्ता नष्ट की गयी। गुजरात कैडर के 30 अधिकारियों को, अनुचित तौर तरीको के द्वारा, केन्द्र में मनमानी नियुक्ति दे दी गयी, जिससे उलूल-जुलूल फैसलों को सही ठहराकर, सहमति ली जा सके। सी0बी0आई0 निदेशक 2 दिसम्बर को रिटायर हुये, समय रहते विधि सम्मत दूसरे निदेशक की नियुक्ति नहीं की गयी, निदेशक के बाद जो सबसे वरिष्ठ अधिकारी थे, उन्हें जानबूझ कर गृह मन्त्रालय में भेज दिया गया, फिर अपने चहेते, गुजरात कैडर के अधिकारी, को सी0बी0आई0 प्रमुख बना दिया गया। लोकपाल की नियुक्ति अभी तक नहीं की गयी है। कांलेजियम द्वारा सुझाये गये जजों की लिस्ट को, आधा-अधूरा स्वीकार करते हैं, वो भी महीनों फाइल दबाने के बाद, इनका दावा था, व्यवस्था में सुधार का, इनका दावा था चुनाव प्रक्रिया में सुधार का, इनका दावा था न्यायिक सुधार का, इनका दावा था पुलिस सुधार का, इनका दावा था मंहगाई खत्म करने का, इनका दावा था किसानों को गरीबी और आत्महत्या से छुटकारा दिलाने का। इनके सब दावे हवा-हवाई हो गये। ये इस देश के नागरिकों को, जनता-जनार्दन को चोर और बेईमान साबित करने में लगे हैं, धूमधाम से बोर्ड लगाकर, बैण्ड बजाकर, हजारों करोड़ रुपये खर्च करके, प्रचारित करते हैं कि जनता चोर है, जनता बेईमान है, जनता टैक्स नहीं देती है जबकि सच्चाई क्या है? ये समझना होगा, पेशाब करने, पखाना जाने के लिये भी जनता को टैक्स देना पड़ता है। नमक, तेल, घी, पानी, सब्जी, आंटा, दाल, चावल, पेट्रोल, डीजल, सड़क, बच्चों की फीस कापी-किताब, नाश्ते की ब्रेड-बिस्कुट, नमकीन, चाय से लेकर दवाईयों, सड़क और शमशान तक पर, ये लोग टैक्स ले रहे हैं, और ताली बजा बजाकर, जुमला सुना-सुना कर, बेशर्मी से यह कहते हैं, कि भारतीय जनता में केवल तीन प्रतिशत लोग है जो टैक्स देते हैं। जबकि वास्तविकता ये है कि अगर इनका वश चले तो जन्म लेने और मृत्यु होने पर भी टैक्स लगा दें। गांवों में लोग परेशान हैं नील गाय से, जंगली सुअर से, खाद, बिजली, पानी और अस्पतालों की कमी से, शहर में लोग परेशान है बन्दरों से, चूहों से, मंहगाई से, दवाई और मच्छरों से, पुलिस सुनती नहीं, बिना घूस दिये बात बनती नहीं, ये बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रहे हैं। शहर-शहर में मेट्रो चलवा रहे हैं। जबसे ये सत्ता में आये हैं, किसान और ज्यादा आत्महत्या कर रहा है, बार्डर पर पहले से ज्यादा सैनिक शहीद हो रहे हैं, कश्मीर, असम, मणिपुर में लगातार अशांन्ति है। पूरे देश के अधिकतर हिस्से में पुलिस और सेना की सहायता से व्यवस्था चलाई जा रही है। मंहगाई आसमान छू रही है। रेल हादसे रोज हो रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत अलग-थलग पड़ा है। पाकिस्तान और चीन का दुस्साहस और ज्यादा बढ़ गया है। रुपया डालर के मुकाबले लगातार कमजोर हुआ है। गुजरात के पाटीदार और दलित नाराज हैं, महाराष्ट्र के मराठा नाराज हैं, उ0प्र0 और हरियाण के जाट नाराज हैं, काश्मीरी मुसलमान नाराज है, अभी तक देश का विकास तो दूर की बात है, देश के लोगों में डर का माहौल है, कटुता बढ़ रही है। इन्हें जब भी देश के आन्तरिक मुद्दों पर जवाबदेही करनी होती है, पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेण्डर का दाम बढ़ाना होता है, रेलवे के यात्री किराये और माल भाड़े में बढ़ोत्तरी करनी होती है, इनकी पार्टी के नेताओं और पार्टी अध्यक्ष के संगीन अपराधों पर पर्दा डालना होता है, तब ये सीमा पर गोली बारी बढ़वा देते हैं। देश के 10-20 बहादुर सैनिकों को मरवा डालते हैं, इनके साइबर सेल के पिट्ठू गुणगान करने लगते हैं, खोखली विचारधारा के कमजर्फ नेता, और बिकी हुई मीडिया, देशभक्ति और पाकिस्तान मुर्दाबाद का राग आलापने लगती है। असली मुद्दे, फर्जी और दिखावटी देश भक्ति की आड़ में, छुप जाते हैं। मासूम और भोली-भाली इस देश की जनता, किंकर्तव्यविमूढ सी खड़ी हुई, ठगी हुई आंखों से, सब कुछ विवशता के साथ, सहती रहती है। देखती रहती है। दामन में कोई छीट ना खंजर पे कोई दाग तुम कत्ल करे हो, कि करामात करे हो। हजारों एकड़ जमीन व्यवसायी और लोलुप योग गुरू बाबा रामदेव को दी गयी, मुम्बई में फिल्मी तारिका हेमामालिनी को कौड़ियों के भाव दे दी गयी। शीर्षस्थ उद्योगपतियों के लाखों करोड़ रुपये जो उन्हें बैंको द्वारा लोन दिया गया था, उन्हें माफ कर दिया गया। गरीब आदमी की गैस सब्सिडी छीन ली जा रही है। ढाई साल के कुल कार्यकाल में विज्ञापन के नाम पर, तमाम एजेन्सियों, समाचार पत्रों, टी0वी0 चैनलों को, एक हजार एक सौ करोड़ रुपयो का भुगतान कर दिया गया। रेल किराये को चार बार में बीस प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है। अरहर की दाल 300 रुपये किलो तक बिकवायी गयी। सरसो का तेल आम आदमी की पकड़ से बाहर है, तीन साल के कार्यकाल में मंहगायी छः बार अधिकतम का रिकार्ड छू चुकी है। सस्ते क्रूड आयल के बावजूद, सस्ते डीजल, पेट्रोल का लाभ नहीं दिया गया, रेल हादसे, सड़कों पर होने वाले रोजमर्रा के, एक्सीडेन्ट जैसे हो गये हैं, बुलेट टेªन चलाने का सपना दिखाने वाली सरकार, सामान्य टेªनों को भी, सही रफ्तार और सही समय से नहीं चला पा रही है, जिस आधार पहचान पत्र परियोजना का विरोध, पानी पी पी कर किया जाता था, उसे ही अतिशय लाभकारी और व्यवहारिक बताकर वित्तीय बिल के रूप में मान्यता दे दी गयी, और देश पर प्रतिवर्ष चालीस हजार करोड़ रुपये का वित्तीय अधिभार अतिरिक्त रूप से लाद दिया गया, और आधार बनाने का काम, विदेशी एजेन्सियों को दिया गया है, जो अपने सबलेट के द्वारा, आम जनता की, निजी और गोपनीय सूचनायें, एकत्रित कर रही हैं, जिनके दुरुपयोग होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। 30 प्रतिशत और 31 प्रतिशत एफ0डी0 आई लागू करने में जो पार्टी हजार तरीके के नुकसान गिना रही थी, उसी भारतीय जनता पार्टी ने, सरकार में आते ही, रक्षा क्षेत्र जैसे अति महत्वपूर्ण और गोपनीय विभाग में 51 प्रतिशत की एफ0डी0आई0 लागू कर दी। राॅफेल विमानों की खरीद सम्बन्धी डील में, भारतीय हितों की अनदेखी करके, उनकी कम्पनी में भागीदार, एक बड़े भारतीय कारोबारी समूह को लाभ पहुंचाने के लिये, लाखों करोड़ रुपये अधिक के भुगतान की, बेजा शर्त मान ली गयी।

आसमान छूती मंहगायी और रुपये की क्रय शक्ति में भयानक गिरावट नंे आम आदमी के जीवन को, दुरुह और दुष्कर बना दिया है रोजमर्रा की जरूरतों के लिये छटपटाता, संघर्ष करता मजबूर आदमी इनके ताने-बाने में इस कदर उलझ गया है, कि उसे असली चाल खुराफात समझने का अवसर ही नहीं है, दोनों वक्त का पूरे परिवार को भरपेट भोजन मिले, स्कूल-कालेज की फीस और दवाइयों का खर्चा निकल आये, इसी जद्दोजहद और उधेड़बुन में परेशान आदमी इनकी फौरी लुभावनी बातों में आकर भ्रमित हो जाता है, सच उजागर होने के सभी रास्ते बन्द कर दिये गये हैं, और मुझ जैसे इक्का-दुक्का लोगों को पागल करार दिये जाने, मार दिये जाने की तैयारी है लेकिन मेरा मानना है लड़ाके कभी मरा नहीं करते, देह बदल-बदल कर आते रहते हैं लड़ते रहते हैं, जगाते रहते हैं, और मैं आपको जगाने के लिये आया हूँ। नींद से जागिये और भारतीय जनता पार्टी का नापाक मंसूबा समझिये इनको उ0प्र0 की सत्ता इसलिये नहीं चाहिये कि इनके मन में सूबे की भलाई के लिये कोई चिन्ता है, कोई योजनायें हैं इन्हें सूबे की सत्ता इसलिये चाहिये कि ये उ0प्र0 के सहारे राज्य सभा में बहुमत में आ सकें, और देश और देशवासियों के हितों को, उद्योगपतियों और अन्तर्राष्ट्रीय ताकतों के हाथों गिरवी रख सकें। और तो और इन्हें अपनी पार्टी के नेताओं कार्यकर्तागणों पर भी विश्वास नहीं है, तड़ीपार अपराधी राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने उ0प्र0 के 403 विधानसभा क्षेत्रों के लिये 37000 व्यक्तियों से, टिकट आवंटन के आवेदन मांग लिये इनकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने, टिकिट दिलवाने के नाम पर, खूब दुकानदारी चमकायी, बाद में जिसने मोटी मलाई चखाई, उसे टिकट दिला दिया और अब राम मन्दिर बनवाने के नाम पर, आरक्षण हटाने के नाम पर भ्रमित करना शुरू कर दिया है इनके बहकावे में मत आइयेगा, इनका असली मकसद संघ के अलम्बरदारों को ऊँची जगहों पर बैठाना है, राष्ट्रपति के चुनाव में जीत हासिल करना है, जिससे ये देश की सांस्कृतिक जड़ों को ही खोखला कर कर सकें, बदल सकें।

भारतीय जनता पार्टी को बढ़त दिलाने के लिये समाजवादी पार्टी गठबन्धन ने भी कमर कस रखी है, ये भी विकास-विकास-विकास की रट के सहारे, दोबारा सत्ता पाने की छटपटाहट के साथ निकल चुके हैं। क्या इस सवाल का जवाब इनके पास है, कि जब 2014 में लोकसभा के चुनाव हो रहे थे, तब एक पूर्ण बहुमत की सरकार और बड़े राजनीतिक परिवार का मजबूत आलम्ब होने के बावजूद, ये तथाकथित लोकप्रिय मुख्यमंत्री, अपनी साख बचाने में बुरी तरह नाकामयाब क्यों हुये? 219 विधायकों, लगभग 60 एम0एल0सी0 24 सांसद और अनगिनत कार्यकर्ता होने के बावजूद, 2014 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी, 403 विधान सभा क्षेत्रों वाले उ0प्र0 प्रदेश के, 328 विधान सभा क्षेत्रों में, पिछड़ गयी, पूरे का पूरा सूबा, साम्प्रदायिक शक्तियों के हवाले हो गया, और तथाकथित क्रान्तिकारी स्वाभिमानी मुख्यमंत्री ने, जिम्मेदारी लेने, इस्तीफा देने की जरूरत नहीं समझी, सैफई महोत्सव में बैठकर, नृत्यांगनाओं के अश्लील नृत्य देखने में मशगूल रहे, पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसता रहा, जियाउलहक, मुकुल द्विवेदी, तंजील अहमद जैसे आला पुलिस अधिकारी, इंस्पेक्टर संतोष यादव जैसे मातहत अधिकारी, मार डाले जाते हैं, घर वापसी, कार्यक्रम चलाया जाता रहा, अखलाख जैसे निरीह बुजुर्ग मुसलमान लोगों को मारा जाता रहा और ये नौजवान मुख्यमंत्री अपनी नाकारा और चाटुकार नौकरशाही के साथ क्रिकेट का मैच जीतने में, अपने पद और सत्ता का दुरुपयोग करने में लगा रहा। साइकिल पथ बनाने, बैटरी रिक्शा चलवाने के नाम पर वाह-वाही लूटी जाती रही, विकास-विकास जुमला दोहराया जाता रहा, दंगों, बलबों, मुठभेड़ों की आड़ में डी0एस0पी0 रैंक के अधिकारियों की हत्या होती रही, और ये माननीय महोदय, अपनी शातिराना मुस्कुराहट की आड़ में, सत्ता और राजनीतिक दल पर, एकछत्र राज पाने के लिये, पारिवारिक नौटंकी में, एक मजे हुए कलाकार की सी भूमिका निभाते रहे। अभी कुछ ही दिनों पहले पूरा उत्तर प्रदेश, डेंगू ज्वर के भयंकर प्रकोप से कराह रहा था, माननीय हाईकोर्ट की ओर से लताड़ सुनायी जा रही थी, निगरानी और निर्देश जारी किये जा रहे थे, और सूबे के बबुआ मुख्यमंत्री, मोहिनी मुस्कान के साथ, मनाने-रूठने का पारिवारिक स्वांग खेलने में मशगूल थे। नामचीन अधिकारियों, जजों, इन्जीनियरों, अधिवक्ताओं के शहर लखनऊ में डेंगू पीड़ित और मृत व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही थी, और माननीय नेता जी का यह नामचीन परिवार राजनीतिक दल पर अधिपत्य की लड़ाई लड़ने में मशगूल था, परिवार के लोग एक दूसरे की पोल खोल अभियान में जुटे हुये एक सधी हुई राजनीतिक नौटंकी, का प्रदर्शन करने में जुटे हुए थे। एक चाचा, दूसरे चाचा पर, आरोप लगाते हैं, कि यादव सिंह भ्रष्टाचारी इंजीनियर के चुंगल में फंसाकर तुमने पार्टी और नेता जी की साख खतम कर दी, उसी कारण सी0बी0आई0 पार्टी और परिवार के पीछे पड़ी हुई है, दूसरे चाचा पहले चाचा पे आरोप लगाते थे कि मथुरा का जय गुरुदेव रामवृक्ष यादव कांड तुम्हारी सह पर हुआ, जिसके कारण डी0एस0पी0 मुकुल द्विवेदी की शहादत हुई, और पार्टी और मुख्यमंत्री के ऊपर आरोप लगे, तब तक मंच पर अल्पसंख्यक हितों के पैरोकार चचा अवतरित होकर कहते हैं कि सब लोग चुप रहो, जो बाहरी आदमी पार्टी में आ गया है यह सब उस कारण हो रहा है, तब तक मुख्य कलाकार कहता है सारे मंत्री चोर हैं, भ्रष्टाचारी हैं प्रदेश को लूटने में लगे हैं, फिर पाश्र्व से आवाज आती है, फैसला हो के रहेगा। अरे मैं कहता हूँ मेरे साथियों, फैसला तो जनता जनार्दन ने, समाजवादी पार्टी के सत्ता सम्हालने के, तेइसवें महीने के भीतर ही सुना दिया था जब यह पूरी पार्टी लोकसभा चुनावों में शर्मनाक रूप से पराजित हुई, भरे-पूरे राजनीतिक खानदान और दल का सूपड़ा साफ हो गया, लेकिन ये केन्द्रीय सत्ता में काबिज लोगों से भी अधिक बेशर्म लोग हैं। समाजवादी पार्टी इनके पिता मुलायम सिंह यादव जी ने जोड़-तोड़ करके बनाई थी, जो उन्होंने जोड़-तोड़ करके हथिया ली, लेकिन जनता-जर्नादन का समर्थन कहाँ से लायेंगे, अपने पिता-चाचा-ताऊ को आँखे तरेरने वाले जनता-जर्नादन से कैसे आँख मिलायेंगे-क्या मुँह दिखायेंगे। इन्हें सत्ता की चाहत में काला-सफेद कुछ भी नहीं दिखाई देता, खूब सूरत इरादों की बात करता है, पतझड़ में गुलाबों की बात करता है। एैसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल से आती है, अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है।

पिछले उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में, पूर्वी उत्तर प्रदेश में, महामारी की तरह से पैर पसार चुकी बीमारी, दिमागी बुखार, का मुद्दा जोर शोर से उठाया गया था, सरकार आने के बाद इनका पहला काम उस बीमारी पर काबू पाना था, कितनी माताओं के नौ-निहाल गुजर गये, जो बच जाते हैं वे पागल और अपंग हो जाते हैं। लेकिन सरकार की कोशिशें लखनऊ की चमक-दमक और विकास के लोक लुभावन नारे का तिलिस्सिम निर्मित करने में लगी रहती है न इनकी आंख में आंसू हैं न ही चेहरे पर पछतावा।

बेकफन लाशों के अम्बर लगे हैं, ये फक्र से कहते हैं, हम ईमान वाले हैं, मैं पूछता हूँ। रातों रात नोट बन्दी का फैसला लिया गया ये जानते थे कि फैसला और फैसला लेने का तरीका गलत है फैसला संसद और मंत्रिमण्डल का नहीं बल्कि एक बेअक्ल अपराधी टाइप हुक्मरान का है चाहते तो सड़क पर उतरकर विद्रोह मचा सकते थे, आखिर उ0प्र0 देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। आपकी पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी उत्तर प्रदेश और आपसे प्रेरित होकर अन्य राज्यों में भी विरोध हो जाता फिर लोकतंत्र में सरकार पीछे हटने को मजबूर हो जाती। देश की आर्थिक मजबूती बचायी जा सकती थी, लेकिन पारिवारिक प्रहसन में ये देशहित भूल गये लेकिन न अभी लोग भूले हैं न ही इन्हें भूलने दिया जायेगा।

भाजपा के कुकर्मों पर आँख तुमने बन्द रखी थी अखिलेश, आखिर तुम पर क्यों विश्वास करें, आदर्शवादी उत्तर प्रदेश।
समाजवादी पार्टी के आदरणीय कार्यकर्तागणों को भी सोचना होगा कि वे एक ऐसी परिवारवादी पार्टी के साथ जुड़कर उसे मजबूत करना चाहते हैं जहाँ पर बड़े परिवार के सभी आका, पापा, चाचा, बाबा, ताऊ, भाभियों, भतीजों, बहुओं और जन्म लेने वाले नन्हे-मुन्ने बाबुओं का खिलखिलाकर, पैर छूकर, नारा लगाकर, सदा सर्वदा खुश रखना जरूरी होगा, किसी की भी नाराजगी टिकट कटवा सकती है। संघर्ष के बूते नया रास्ता बनाने वाली पार्टी, अंग्रेज, इलेक्शन मैनेजमेंट एक्सपर्ट के रहमोकरम की मोहताज है।

मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे करूँ, मैं इन नजारों का अन्धा तमाशबीन नही।

आज अपनी सत्ता बचाने के लिए और सत्ता में भागीदारी के लिए गठबन्धन राजनीति का सहारा लिया जा रहा है। एक-दूसरे के खिलाफ गलतियाँ गिनाने-बताने वाले लोग गलबहियाँ कर रहे हैं, जबकि दोनों के दोनों नेता पुत्र, फेल हुए हैं, इनकी गलतियों का खामियाजा इस देश को, उत्तर प्रदेश को तथा आवाम को भुगतना पड़ा है, इनका केवल एक ही उद्देश्य है सत्ता में आओ-सत्ता बचाओ। देश और देश के लोगों की दिशा-दशा की इन्हें कोई चिन्ता नहीं है। इनका कोई प्रचार सही-गलत के मापदण्ड पर नहीं है, मधुर वाणी-मधुर मुस्कान के मायाजाल के सहारे ये सत्ता में बदलाव चाहते हैं व्यवस्था में बदलाव की न इनकी कोई इच्छा है, न इनके पास कोई कार्यक्रम है और न ही कोई दूरदृष्टि। इनके सारे-प्रचार और नारे का केवल एक ही अर्थ है कि तुमने इन्हें गलती करने का मौका दिया और अब हमें भी गलती करने का मौका दो।

आखिर कब तक की जायेंगी गलितयाँ और कब तक उन गलतियों का खामियाजा भुगतेगा यह देश और इस देश की जनता।

आज सोच-समझ कर फैसला लेने के लिए जब मैं आपको जगाने के लिए आवाज दे रहा हूँ तब आप यह भी सोच रहे होंगे कि सारी जानकारियाँ आखिर सार्वजनिक क्यों नहीं हो पाती, उसका कारण बहुत साफ है कि समाचार प्रसारण और प्रकाशन के लिए जो सैकड़ों मीडिया ग्रुप्स काम कर रहे हैं वे तीन साल पहले तक 39 अलग-अलग मीडिया कार्पोरेट हाउस द्वारा संचालित किये जाते थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि चैनलों की संख्या वही है लेकिन संचालन करने वाले गु्रप्स 39 में से 21 रह गये हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि छमजूवता 18 नामक मीडिया ग्रुप्स ने 18 गु्रप्स को खरीदकर अधिगृहीत कर लिया और उसके मालिक देश के सबसे बड़े उद्योगपति हैं जिनके संरक्षण को देश का प्रधानमंत्री अपना गौरव समझता है। वहीं से आपको झूठ-दर-झूठ, जुमला फिर जुमला सुनाया जाता है और आप शातिराना चालों से अन्जान वाह-वाह करते रहते हैं। छोटे-छोटे अखबारों, प्रसारण और प्रकाशन एजेन्सियों पर अधिक प्रतिबन्ध लादकर उन्हें बन्द होने के कागार पर पहुंचा दिया गया है जिससे सच का एक कतरा तक आपके पास न पहुंचने पाये। जिन चमकते-खिलखिलाते लोगों को आप पत्रकार समझते हैं जिन पर सच बताने दिखाने, लिखने, छापने की जिम्मेदारी बनती है दरअसल वे केवल सामान्य श्रेणी के वेतनभोगी हैं। सामान बेचने वाले सेल्समैन की तरह इनका काम ग्राहकों की संख्या बढ़ाना, झूठ और सनसनी बेचना है। शरीर बेचने का काम गन्दा समझा जाता है इसीलिए ये लोग हुनर बेचते हैं झूठ बेचते हैं। कानून के संरक्षण में इनका और इनके व्यापारिक मालिकों का काम- धंधा, फलता-फूलता रहता है। हर चीज दिखा रहे हैं सच्चाई छोड़कर। आता ही है क्या उनको, बुराई छोड़कर।।

मगर लोग तो लोग हैं आज नहीं तो कल इस व्यवस्था का सारा झूठ जान ही लेेंगे और तब ये मासूम लोग ही इस लुटेरे ढाँचे को बदले देंगे। आदर्शवादी काँग्रेस पार्टी का साफ तौर पर मानना है कि 2014 के पूर्व की केन्द्रीय सरकार ने ही भारत में भोग विलास और व्यापार की संस्कृति को बढ़ावा दिया, सेवा, त्याग, मूल्य और सिद्धान्तों की राजनीति को तिलांजलि दी, अपसंस्कृति को बढ़ावा देने में अगुवाई उन्हीं की थी। वर्तमान व्यवस्था के सिरमौर पुरुष, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्रीय सरकार ने उसी अपसंस्कृति को आगे बढ़ाने, शिखर पर पहुंचाने का काम किया, जिस अपसंस्कृति और अनाचार से छुटकारे की बात थी, इन्होंने उसी अपसंस्कृति और अनाचार को अपने नेतृत्व में और ज्यादा जोरदार ढंग से आगे बढ़ाया है। उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में भारत देश को बचाने के लिए आगे आना होगा, उत्तर प्रदेश की बहुदलीय राजनीति एक सौभाग्य के रूप में हमारे सामने एक अवसर है। हमें सोच-समझकर फैसला लेना होगा। गलत का विरोध करने के लिए प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार के खिलाफ और केन्द्र की सरकार के खिलाफ मतदान कीजिए, सूबे में जहाँ-जहाँ भी आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं वहाँ अपने उन आदर्शवादी भाइयों का समर्थन कीजिए
जय हिन्द! जय भारत!! जय आदर्शवाद!!!