मेरी कहानी मेरा जागरण

“दर्शक बनकर एक इमारत बनते देखना अच्छी बात है , पर एक इंजीनियर की तरह निर्माण में शरीक होने का सुकून कुछ और ही है ।” इस बात का एहसास मुझे आठ वर्ष की उम्र में हुआ। मै अपनें स्कूल के वार्षिकोत्सव में नाटक देखने के लिये सम्मिलित हुआ था,तभी मेरे मन में अपने साथियों से मिलने की उत्कंठा जागी जो मंच पर अपनी प्रस्तुति देनें वाले थे। मै मंच के पीछे ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ा तभी एक तरुण शिक्षिका नें मुझे रोका उनके पूछने पर मैनें अपना परिचय दिया और बताया की मै अपनें मित्र से मिलने जा रहा हूँ ,शिक्षिका नें मुझे आगे जानें से मना कर दिया क्योंकि मैंने स्कूल बैच नहीं लगा रखा था और कोई रोल अदा नहीं कर रहा था मै बुझे मन से वापस दीर्घा में जाकर बैठ गया । इस छोटी घटना नें मेरे मन को आंदोलित कर दिया और मेरी सोच में जागरण हुआ ,मैंने तय किया कि जीवन में मुझे दर्शक दीर्घा में न बैठकर पूरी व्यवस्था का पार्ट एंड पार्सल बनना है यही कारण है की मेरी सोच पूरी तरह बदल गयी और आज मै एक बड़े राजनीतिक -बियावान में आकर अपनी भूमिका निभाने के सार्थक अवसर की तलाश में हूँ।

बात 2012 की है जब 29 दिसंबर को विश्व के सबसे बड़े हिंदी दैनिक समाचार पत्र, दैनिक जागरण में, पूरे देश में, मेरी तस्वीर के साथ, आधे पेज पर, मेरे बचपन का एक संस्मरण ” मेरी कहानी मेरा जागरण” शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ। \