पत्र-२

बात-चीत में स्वाभाविक रूप से उपजे प्रसंग के बाद आपका स्वर कुछ उग्र होकर तीक्ष्ण हो गया तब बात बिलावजह की बहस में न तब्दील हो इसी लिये कॉल काटकर मोबाईल बिस्तर पर दूर फेंक दिया, थोड़ा बाद में जान पाया की वो ऑफ हो गया था जब ऑन किया तो आपका SMS मिला SMS का मतलब ही नहीं समझ पा रहा हूँ , आखिर किस वजह से इतना कोप – इतनी वितृष्णा दो आत्यांतिक रूप में हार्दिकता से जुड़े व्यक्ति बात-चीत में यदि अपना विषाद-कष्ट अथवा दुःख-रोग-ताप इत्यादि साझा करते हैं तो इसमें इतनी कुपित होने वाली कौन सी बात है -? क्या व्यक्ति के माँ – बाप- भाई- बहन-पति-पत्नी- या ऐसे ही सखा-सहोदर और रिश्ते-नाते वाले लोगों से ही आत्मीयता और प्रेम होते हैं-? ईश्वर-ईश्वरीय सत्ता,-बंधुओं-गुरुओं-उपकारियों-माननीयों-सदाचारियों और जगत के कल्याण के लिये निष्ठापूर्वक प्रयत्नशील लोगों अथवा प्राण उत्सर्ग कर चुके लोगों से कोई घनिष्ठता-आत्मीयता-प्रेम और जुड़ाव नहीं हो सकता-? आपके इसी रुष्ट और क्षुद्र व्यवहार के कारण बहुत से मनोभावों को मै आपसे व्यक्त ही नहीं करता हूँ । मेरा मानना है की व्यक्ति को अपने संघर्ष की परेशानियों के कारण निष्ठुर ह्रदय नहीं बनना चाहिये । दो व्यक्तियों में आपसी सौहार्द और प्रेम अक्षुण्य रूप से कायम रहे इस हेतु एक-दूसरे के पारस्परिक पसंद-नापसंद का ख़याल रखना एक बड़ी जरूरत और शर्त है । मेरे मन में सदैव ही आपके प्रति आदर – श्रद्धा – प्रेम और समर्पण ही रहा है, आपके प्रति तिरस्कार – अन्याय- अश्रद्धा और रोष मेरे मन में गलती से भी नहीं उपज सकती लेकिन फिर भी जाने-अनजाने अक्सर ही आपका प्रत्युत्तर अनादर पूर्ण ही रहा है । मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है व्यक्ति जिस परिवेश वैशिष्ट्य में पलता-बढ़ता है, जिस प्रकार के व्यक्तिगत-सामाजिक-पारिवारिक अनुभव उसे प्राप्त होते हैं , उसके व्यक्तित्व और व्यवहार में उन्हीं प्रकार के गुण-दोष का प्रतिबिम्ब स्थान पा जाता है । उम्र और अन्यान्य पारिवारिक – सामाजिक अनुभवों में आपसे छोटा हूँ एक इस कारण से भी ना किये गये अपराध के लिये क्षमा मांगकर आपको अगणित शुभकामनायें देता हूँ कि सब प्रकार के सुख आपके जीवन में चिरकाल के लिये स्थाई रूप से सम्मिलित हों ।