राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्म दिवस पर श्रद्धाँजलि

मैं कोई लेखक नहीं हूँ। लेखन के क्षेत्र से हमारा दूर-दूर तक कोई वास्ता भी नही है और न ही हम किसी प्रकार की उपलब्धि अथवा लोकप्रयिता हासिल करने के लिये प्रस्तुत निबन्ध लिखने जा रहे हैं। आज के बदलते हुए दौर में जब एक महान विश्व-व्यिक्तत्व की प्रेरणादायक छवि पर कुछ स्वार्थी, पदलोलुप और देश को पतन की राह पर ले जाने वाले कथित माननीय पुरूषों द्वारा जो कुठाराघात किया जा रहा है, मुझे व्यक्तगित तौर पर कचोट रहा है और इसीलिये मैं अपने मन की भड़ास यहां पर निकालना चाहता हूं। आज जो टिप्पणियां उस महान व्यक्तित्व के बारे में की जाती हैं उसमें क्या सही है और क्या गलत इसका ठीक निर्णय मैं नहीं कर पाता हूं, चूँकि अभी उस अवस्था तक मेरी पहुंच नहीं है कि मैं कोई दे निर्णय सकूँ और जो दूसरी बात महत्वपूर्ण है वह यह कि गांधीजी के सार्वजानिक और व्यक्तगित जीवन के बारे में हमें बहुत कुछ ज्ञात नहीं है, परन्तु जितना कुछ भी हमें ज्ञात है उस आधार पर मैं स्वयं को यह कहने की स्थिति में पाता हूं कि जो कुछ भी हो, २ अक्टूबर सन् १८६९ में जन्म लेने वाले ‘‘मोहनदास करमचन्द गांधी’’ जो कालान्तर में पूरे विश्व में, एक सम्पूर्ण विश्व-व्यिक्तत्व की पहचान स्वरूप महात्मा गाँधी के रूप में मशहूर हुये उस पर प्रश्न चिन्ह लगाना एक भयानक घृणित कार्य तथा अक्षमनीय अपराध है।

हमारे भारतवर्ष की पहचान है महात्मा गाँधी। महात्मा गांधी हमारे बीच इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने भारतवर्ष को स्वतन्त्र कराने में एक महत्वपूर्ण और संघर्ष भूमिका निभायी बल्कि इसलिए कि उन्होंने सदैव सार्वजनिक हितों के लिये अपने व्यक्तगित जीवन को कष्टमय बनाया और हम सभी को व्यवहारिक रूप से एक आदर्श, संघर्षमय और सैद्धान्तिक जीवन बिताने की प्रेरणा दी। ऐसा नहीं है कि गांधीजी के ऊपर जो कटाक्ष किये जा रहा है वह कोई नयी बात हो, यह तो हमेशा से होता आया है कि प्रत्येक महापुरूष पर आरोप लगाये गये हैं, परन्तु ऐसे समय में जब कि कोई महापुरूष अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का जवाब देने के लिय हमारे बीच उपस्थित न हो तब निराधार और मनगढ़ंत आरोपों से एक महान-विश्व व्यिक्तत्व की आत्मा को आहत करना सर्वथा निन्दनीय है और इस अपराध की जितनी भत्सना की जाये कम ही होगी।

हो सकता है कि आज के इस पतनोन्मुखी समाज में गांधी के आदर्श-सिद्धांत तथा मान्यताएं और उपदेश अप्रासांगिक हो गये हों, परन्तु यह तो तय है और सबके द्वारा स्वीकार किया जाता है कि यदि हम अपने को पतन के गर्व में गिरने से बचाना है और पुन: मानव समाज में नैतिकता को स्थापित करना है तो हमें कहीं ना कहीं गांधी के नियम-सिद्धांतों और आदर्श- जीवन मूल्यों का सहारा लेना ही पड़ेगा।

‘‘समय’’ निरन्तर गतिमान अवस्था में रहता है, जिसका परिणाम यह है कि जीवन के जो आदर्श और सिद्धान्त तथा नियम आज हमारे लिये मूल्यवान और प्रासंगिक हैं वहीं कल अर्थहीन होकर अप्रासांगिक हो जाते है। यह एक नि:तान्त सत्य है और हम सभी को स्वीकार करना चाहिये कि गांधी में ऐसा कुछ ना कुछ तो था ही जो कि संपूर्ण भारतीयों का ही नहीं वरन् बहुसंख्यक विदेशियों का भी प्रेरणास्त्रोत बना और एक शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य में एक हाड़मांस से बने पुतले के आगे अपना दम तोड़ दिया। मैं ये तो नहीं कहता कि भारतवर्ष को स्वाधीन कराने का सम्पूर्ण श्रेय गांधी जी को ही जाता है, परन्तु हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि यदि गांधीजी ना होते तो हमें इतनी शीघ्र आजादी न मिली होती, चूंकि किसी भी विध्वंशात्मक कार्यबाही का मुंहतोड़ जवाब देने की ताकत तत्कालीन बिर्टिश साम्राज्य में थी। वास्तविक तथ्य जो है वो ये कि भारतवर्ष को स्वाधीन कराने में हिंसक और अहिंसक दोनों ही गतिविधियों का योगदान रहा और अहिंसक गतिविधियों को संचालित करने का सम्पूर्ण श्रेय निर्विदाद रूप से गांधी जी को ही जाता है।

गांधीजी ने कभी भी अपने विचार-मान्यताएं-सिद्धान्त-आदर्श तथा कार्य पद्ध्यती किसी पर थोपी नहीं केवल ये संदेशमात्र दिया कि उनमें व्यवहारिक रूप से जो तुम्हें सत्य तथा न्याय के करीब लगे और सम्पूर्ण समाज के लिये हितकारी हो उसका अनुकरण कर लो, परन्तु हम इसे किसी भी प्रकार का दबाव नहीं मान सकते।

हिन्दू धर्म का अनुयायी होने के कारण मेरी इस तथ्य में सम्पूर्ण आस्था है कि मनुष्य को भगवान ने बनाया है और जिसका स्वभाव ही गल्तियां करना है। कहने का तात्पर्य ये है कि गांधी जी भी कोई भगवान नहीं थे वो भी प्रभू के द्वारा बनाये गये मनुष्यों में से ही एक थे, यहीं एकमात्र कारण है कि उनसे भी कुछ भूलें शायद हो गयी हों,, परन्तु इसका ये अर्थ कदापि नहीं होना चाहिये कि उनके विचार और सिद्धान्त यथार्थ से कोसों दूर और वास्तविकता से परे हैं।

व्यक्तगित रूप से तो हम किसी भी महापुरूष के जीनन-सिद्धांतों और विचारों पर अपनी तर्कसंगत और अनुकूल टिप्पणी दे सकते हैं, परन्तु सार्वजनिक रूप से किसी भी विश्व-व्यिक्तत्व के जीवन पद्धति ओर कार्यशैली तथा नियमों और सिद्धान्तों एवं आदर्श का माखौल उड़ाना एक दण्डनीय अपराध माना जाना चाहिये।

गांधीजी अपने युग के जीवन काल में किसी एक राष्ट्र और उनके नागरिकों के लिये नहीं अपितु अनेकों राष्ट्र तथा उनके नागरिकों के लिये प्रेरणास्त्रोत बने, इस बात को ध्यान में रखकर गांधी जी के आलोचकों को यह चिन्तन करना चाहिये कि कहीं गांधी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणी करके वो एक राष्ट्रघाती विचारधारा को जन्म तो नहीं दे रहे हैं, यदि हां तो इसके लिये उन्हें सक्रयि और सार्थक प्रायश्चित करना चाहिये अन्यथा इसके परिणाम गम्भीर हो सकते हैं, जिसका खामियाजा पूरे राष्ट्र को भुगतना पड़ेगा।

आज भले ही हमारे बीच गांधीजी उपस्थित नहीं है, परन्तु उनके जीवन मूल्यों से हमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये और नकी जो विचारधारायें, समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में तथा सम्पूर्ण जनमानस को पतन के मार्ग पर जाने से रोकने में सहायक हो उन्हें व्यावहारिक रूप से अपने जीवन में अंगीकृत करना चाहिये।

यही एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी होने के नाते बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली है।

 

 

बी. डी. त्रिपाठी

०२-१०-१९९४